विपत्ति आनेके पहिले सृजनहार प्रभु यीशुको तू स्मरण कर !
विपत्ति आनेके पहिले सृजनहार प्रभु यीशुको तू स्मरण कर !
विपत्ति आनेके पहिले सृजनहार प्रभु यीशुको तू स्मरण कर ! (Before the difficult days come remember your Creator).
आत्महत्या कि परमेश्वराला मनापासून शोधणे ? – जीवनातील समस्येंसाठी खरा उपाय काय ?
आत्महत्या कि परमेश्वराला मनापासून शोधणे ? – जीवनातील समस्येंसाठी खरा उपाय काय ?
Do I have a right to kill myself? Acts 17:26,27 answers that the trials, afflictions .. everything comes from the hand of our gracious God that we might seek HIM with all our heart! Language: Marathi
माझा जगण्याचा उद्देश काय आहे?
माझा जगण्याचा उद्देश काय आहे?
Why am I here? What is the purpose of my life? The Biblical answers to the basic questions of life in Marathi.
अनन्त जीवन का शुभ-समाचार
अनन्त जीवन का शुभ-समाचार
मेरी आत्मा की अनन्त काल की भलाईं के लिए क्या कोई शुभ - समाचार हैं? जी हाँ ! प्रभु यीशु मसीह में (अपने पाप क़बूल करनेवाले पापीयोंको) सारे पापोंकी क्षमाप्राप्ति और परमेश्वर के साथ मिलाप होकर सच्ची शान्ति मिलती हैं।
शुभ वर्तमान (The Gospel in Marathi)
शुभ वर्तमान (The Gospel in Marathi)
माझ्या आत्म्याच्या अनन्त काळ च्या भलाई साठी शुभ -वर्तमान आहे का ? होय! प्रभु येशु ख्रिस्ता मधे (पाप स्वीकार क़रुन विश्वास ठेवणार्या पापी व्यक्तिना) सर्व पाप अपराधांची क्षमा मिळते व परमेश्वरा सोबत मिलाप होऊन खरी शान्ति मिळते।
Justification & Regeneration – हिन्दी
Justification & Regeneration – हिन्दी
हिन्दी – What does the Bible mean when it says that Christians have died to sin? How is it possible for a just God to justify the ungodly without becoming unjust Himself? What is regeneration? What is justific...
एक मनुष्य ईश्वर के समक्ष कैसे सही हो सकता है?
एक मनुष्य ईश्वर के समक्ष कैसे सही हो सकता है?
पहली नज़र में यह प्रश्न बहुतों को ऊट पटांग लगेगा | आख़िरकार, क्या परमेश्वर प्रत्येक को क्षमा नहीं करता और ग्रहण नहीं करता? क्या प्रत्येक परमेश्वर के समक्ष "सही" नहीं है?
यीशु मसीह में परमेश्वर का प्रेम
यीशु मसीह में परमेश्वर का प्रेम
परमेश्वर का क्रोध अवर्णनीय है, लेकिन यीशु मसीह के द्वारा प्रदर्शित उनका प्रेम और भी वर्णन से बहार है |
सच्चे मसीही का बदला हुआ नया स्वभाव – सत्र १ और २